OO कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है.शुक्रवार को शीर्ष अदालत ने सोशल मीडिया पर कविता पोस्ट करने के मामले में उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया. कविता संबंधी आरोपों पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मौलिक अधिकारों की रक्षा होनी चाहिए. पुलिस बुनियादी सुरक्षा की रक्षा करे. जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने यह फैसला सुनाया.
TTN Desk
यह FIR उनके इंस्टाग्राम पोस्ट ‘ऐ खून के प्यासे बात सुनो’ कविता को लेकर दर्ज की गई थी। कोर्ट ने फैसले में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर जोर देते हुए पुलिस और निचली अदालतों की संवेदनशीलता पर सवाल उठाए।सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि संविधान के अनुसार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंध लगाया जा सकता है, लेकिन उचित प्रतिबंध नागरिकों के अधिकारों को कुचलने के लिए अनुचित और काल्पनिक नहीं होना चाहिए. कविता, नाटक, संगीत, व्यंग्य सहित कला के विभिन्न रूप मानव जीवन को अधिक सार्थक बनाते हैं और लोगों को इसके माध्यम से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी जानी चाहिए.
O जस्टिस एएस ओका ने क्या कहा?
जस्टिस एएस ओका ने कहा कि कोई अपराध नहीं हुआ. जब आरोप लिखित रूप में हो तो पुलिस अधिकारी को इसे पढ़ना चाहिए, जब अपराध बोले गए या बोले गए शब्दों के बारे में हो तो पुलिस को यह ध्यान रखना चाहिए कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बिना ऐसा करना असंभव है. भले ही बड़ी संख्या में लोग इसे नापसंद करते हों. इसे संरक्षित करने की आवश्यकता है. जजों को बोले गए या लिखे गए शब्द पसंद नहीं आ सकते हैं, फिर भी हमें इसे संरक्षित करने और संवैधानिक सुरक्षा का सम्मान करने की आवश्यकता है. न्यायालयों को संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए सबसे आगे रहना चाहिए.
O जस्टिस उज्ज्वल भुइयां ने क्या कहा?
जस्टिस उज्ज्वल भुइयां ने कहा कि नागरिक होने के नाते पुलिस अधिकारी अधिकारों की रक्षा करने के लिए बाध्य हैं. जब धारा 196 बीएनएसएस के तहत अपराध होता है तो इसे कमजोर दिमाग या उन लोगों के मानकों के अनुसार नहीं आंका जा सकता है जो हमेशा हर आलोचना को अपने ऊपर हमला मानते हैं. इसे साहसी दिमाग के आधार पर आंका जाना चाहिए. हमने माना है कि जब किसी अपराध का आरोप बोले गए या बोले गए शब्दों के आधार पर लगाया जाता है, तो मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए बीएनएसएस की धारा 173(3) का सहारा लेना पड़ता है.
46 सेकेंड के वीडियो पर FIR हुई थी
FIR में आरोप लगाया गया है कि इमरान प्रतापगढ़ी ने 29 दिसंबर को अपने एक्स हैंडल पर कविता की 46 सेकेंड की वीडियो क्लिप पोस्ट की थी। बैकग्राउंड में ‘ऐ खून के प्यासे बात सुनो’ गीत बज रहा था। इमरान प्रतापगढ़ी ने जामनगर में आयोजित सामूहिक लगन समारोह में शिरकत करने के बाद यह सोशल मीडिया पोस्ट की थी।
O गुजरात हाईकोर्ट से नहीं मिली थी राहत
प्रतापगढ़ी के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 196 (धर्म या नस्ल के आधार पर दुश्मनी को बढ़ावा देना) और 197 (राष्ट्रीय एकता के लिए हानिकारक कथन) के तहत मामला दर्ज किया गया था।प्रतापगढ़ी ने इस FIR को रद्द करने के लिए पहले गुजरात हाई कोर्ट का रुख किया था, लेकिन 17 जनवरी को हाई कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी थी। हाई कोर्ट ने कहा था कि जांच शुरुआती चरण में है और प्रतापगढ़ी ने जांच में सहयोग नहीं किया। इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी।
O कविता प्रेम और अहिंसा का संदेश देती है : प्रतापगढ़ी
प्रतापगढ़ी के इस वीडियो क्लिप में दिखाया गया है कि जब वह हाथ हिलाते हुए चल रहे थे तो उन पर फूलों की पंखुड़ियां बरसाई जा रही थीं और पृष्ठभूमि में एक गाना बज रहा था। प्रतापगढ़ी ने प्राथमिकी रद्द करने के लिए दाखिल याचिका में दावा किया कि पृष्ठभूमि में पढ़ी जा रही कविता प्रेम और अहिंसा का संदेश देती है।
O अब आप भी पढ़िए ये है वो कविता
ऐ ख़ून के प्यासों बात सुनो / गर हक़ की लड़ाई ज़ुल्म सही / हम ज़ुल्म से इश्क़ निभा देंगे
गर शम्मआ ए गिरिया आतिश है / हर राह वो शम्मआ जला देंगे
गर लाश हमारे अपनों की / ख़तरा है तुम्हारी मसनद का
उस रब की कसम हंसते-हंसते / इतनी लाशें दफना देंगे
ऐ खून के प्यासों बात सुनो / जो सब्र में मिलती है क़ु’अत / वो जब्र में किसने पायी है
ये सू’ले चमन से अजाबे खिजां / पल दो पल की अंगड़ाई है
दो चार बरस खिल जाओ / हां कब्र में वो तनहाई है
हर बाग़ तेरा सूना होगा / सैयादों की रुसवाई है.
शायर और सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ने यह नज़्म एक निजी समारोह में पढ़ी और उसे इन्स्ताग्राम पर लोड कर दिया . गुजरात में उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज कर दिया .