* विशेष संवाददाता *
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00 अपनी रिलीज के स्वर्ण जयंती वर्ष में बॉलीवुड की सबसे ज्यादा सफल और बेमिसाल कही जाने वाली फिल्म शोले एक बार फिर चर्चा में है।इटली के फिल्म समारोह में इसका ओरिजिनल वर्शन प्रदर्शित होगा।जी हां,1975 में आपातकाल के दौर में आई इस फिल्म को सेंसर बोर्ड ने कुछ कट और उसके क्लाइमेक्स में बदलाव के बिना प्रदर्शन की अनुमति देने से इनकार कर दिया।आइए जानते है वो ओरिजिनल क्लाइमेक्स क्या था और उसे आखिर बदलने के क्या कारण दिए गए।वहीं ओरिजिनल वर्शन देखने वाले दर्शकों और समीक्षकों ने क्या राय जताई थी।
TTN Desk
1975 में रिलीज हुई शोले, रमेश सिप्पी के निर्देशन में बनी एक ऐतिहासिक बॉलीवुड फिल्म है, जिसे सलीम-जावेद ने लिखा और अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र, संजीव कुमार, हेमा मालिनी, जया भादुड़ी और अमजद खान जैसे सितारों ने इसे जीवंत किया। यह फिल्म अपनी कहानी, किरदारों, डायलॉग्स और नाटकीय क्लाइमेक्स के लिए आज भी याद की जाती है। हालांकि, दर्शकों ने जो क्लाइमेक्स देखा, वह फिल्म का ओरिजिनल अंत नहीं था। सेंसर बोर्ड के हस्तक्षेप के कारण इसे बदला गया। आइए, जानते है शोले के ओरिजिनल क्लाइमेक्स और इसके बदले हुए संस्करण के विषय में कि आखिर फिल्म में ये बदलाव क्यों करना पड़ा।
0शोले की कहानी का सार
शोले एक बदले की कहानी है, जिसमें ठाकुर बलदेव सिंह (संजीव कुमार) अपने परिवार की हत्या और अपनी बाहों के कटने का बदला लेने के लिए डाकू गब्बर सिंह (अमजद खान) को पकड़ने की योजना बनाते हैं। इसके लिए वे दो छोटे मगर साहसी अपराधियों, जय (अमिताभ बच्चन) और वीरू (धर्मेंद्र) की मदद लेते हैं। फिल्म का क्लाइमेक्स ठाकुर और गब्बर के बीच अंतिम टकराव का चरमोत्कर्ष है, जो कहानी का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है।
0 ओरिजिनल क्लाइमेक्स:
ठाकुर का बदलाशोले के ओरिजिनल क्लाइमेक्स में ठाकुर और गब्बर के बीच की लड़ाई बेहद नाटकीय और हिंसक थी। इस सीन का विवरण इस प्रकार है….
स्थान और माहौल: अंतिम टकराव में गब्बर के अड्डे पर ही ठाकुर गब्बर को अकेले में भिड़ने के लिए ललकारते हैं। माहौल तनावपूर्ण और भावनात्मक है, क्योंकि ठाकुर का गुस्सा और बदले की आग चरम पर है।
ठाकुर की रणनीति: गब्बर ने ठाकुर के दोनों हाथ काट दिए थे, इसलिए ठाकुर अपने पैरों को हथियार बनाते हैं। उन्होंने अपने जूतों में लोहे की नुकीली कीलें लगाई होती हैं, जो उनकी क्रूरता और बदले की तीव्रता को दर्शाती हैं।
लड़ाई का दृश्य: ठाकुर गब्बर पर अपने पैरों से प्रहार करते हैं, जिससे गब्बर लहूलुहान हो जाता है। यह सीन लंबा और तीव्र है, जिसमें ठाकुर का हर प्रहार उनके परिवार के कत्ल का बदला लेने की भावना को दर्शाता है।
गब्बर की मौत: ओरिजिनल क्लाइमेक्स में ठाकुर गब्बर को इतना मारते हैं कि वह मर जाता है। यह ठाकुर के बदले का पूर्ण और संतुष्टिदायक अंत था।
भावनात्मक प्रभाव: यह क्लाइमेक्स दर्शकों को ठाकुर के दर्द और उनकी जीत के साथ जोड़ता था, जिससे गब्बर की हार एक भावनात्मक विजय बन जाती थी।
0सेंसर बोर्ड का हस्तक्षेप
1975 में, जब शोले सेंसर बोर्ड के पास पहुंची, तो भारत में आपातकाल (Emergency) लागू था। सेंसर बोर्ड ने ओरिजिनल क्लाइमेक्स को निम्न कारणों का हवाला दे कर खारिज कर दिया…
अत्यधिक हिंसा: ठाकुर द्वारा गब्बर की क्रूर हत्या को बहुत हिंसक माना गया, जो उस समय के दर्शकों, खासकर युवाओं, पर गलत प्रभाव डाल सकता था।
कानून का उल्लंघन: सेंसर बोर्ड ने माना कि ठाकुर का कानून को अपने हाथ में लेकर गब्बर को मारना गलत संदेश देता है। आपातकाल के दौरान सरकार कानून और व्यवस्था को बढ़ावा देना चाहती थी।
सामाजिक प्रभाव: बोर्ड को डर था कि यह सीन लोगों को निजी बदला लेने के लिए प्रेरित कर सकता है, जो उस समय आपातकाल की राजनीतिक स्थिति में खतरनाक हो सकता था।सेंसर बोर्ड ने रमेश सिप्पी को क्लाइमेक्स को फिर से शूट करने का आदेश दिया, जिसमें कानून का पालन और कम हिंसा दिखाई जाए।
00 बदला हुआ क्लाइमेक्स
सेंसर बोर्ड के दबाव में रमेश सिप्पी ने क्लाइमेक्स को फिर से शूट किया, जो दर्शकों ने सिनेमाघरों में देखा।
0 बदले हुए क्लाइमेक्स का विवरण:
लड़ाई का प्रारंभ: ठाकुर और गब्बर के बीच लड़ाई शुरू होती है, और ठाकुर अपने कील वाले जूतों से गब्बर पर हमला करते हैं। यह हिस्सा ओरिजिनल से मिलता-जुलता है।
पुलिस का आगमन: जब ठाकुर गब्बर को मारने की कगार पर होते हैं, तभी पुलिस घटनास्थल पर पहुंच जाती है। पुलिस अधिकारी ठाकुर को रोकते हैं और उन्हें समझाते हैं कि गब्बर को कानून के हवाले करना चाहिए। यह सीन नैतिकता और कानून के प्रति सम्मान को दर्शाता है।
0गब्बर की गिरफ्तारी: अंत में, पुलिस गब्बर को गिरफ्तार कर लेती है, और ठाकुर का बदला अधूरा रह जाता है।
0भावनात्मक प्रभाव: यह क्लाइमेक्स कानून के प्रति सम्मान को दर्शाता है, लेकिन ठाकुर के बदले की भावना को अधूरा छोड़ देता है, जो कुछ दर्शकों को खला।
0 दर्शकों और क्रिटिक्स की प्रतिक्रिया
ओरिजिनल क्लाइमेक्स: कुछ चुनिंदा स्क्रीनिंग में ओरिजिनल क्लाइमेक्स दिखाए जाने पर दर्शकों ने इसे खूब सराहा। ठाकुर का गब्बर को मारना कहानी के भावनात्मक चरमोत्कर्ष के साथ मेल खाता था। यह सीन ठाकुर के दर्द और बदले की भावना को पूर्णता देता था।
बदला हुआ क्लाइमेक्स: बदले हुए क्लाइमेक्स को भी सराहा गया, लेकिन कई दर्शकों और क्रिटिक्स को लगा कि यह ठाकुर के किरदार के साथ पूरी तरह न्याय नहीं करता। बदला अधूरा रहना भावनात्मक रूप से कम प्रभावी था।
निर्देशक और लेखक की राय: रमेश सिप्पी और सलीम-जावेद ने बाद में साक्षात्कारों में बताया कि उन्हें ओरिजिनल क्लाइमेक्स ज्यादा पसंद था, क्योंकि यह कहानी और ठाकुर के किरदार के साथ ज्यादा फिट बैठता था। हालांकि, सेंसर बोर्ड की मजबूरी को उन्होंने स्वीकार किया।