टैरिफ और ट्रेड : भारत-अमेरिका बढ़ रहे है टैरिफ समझौते की ओर,जून में होगा ऐतिहासिक निर्णय

OO जून अंत तक हो सकता है अंतिम रूप, दोनों देशों के व्यापारिक संबंधों को मिलेगी नई ऊंचाई

TTN Desk

भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका एक महत्वपूर्ण अंतरिम व्यापार समझौते को अंतिम रूप देने के करीब हैं, जिसका उद्देश्य द्विपक्षीय व्यापार में आने वाली शुल्क बाधाओं को कम करना है। उम्मीद है कि इस समझौते को जून 2025 के अंत तक अंतिम रूप दे दिया जाएगा, जिससे दोनों देशों के बीच व्यापार संबंधों में एक नया अध्याय जुड़ेगा।मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस समझौते से न केवल भारतीय निर्यातकों को अमेरिकी बाजार में बेहतर पहुंच मिलेगी, बल्कि अमेरिकी उत्पादों के लिए भी भारतीय बाजार में रास्ते खुलेंगे।

O मुख्य वार्ता और लक्ष्य:

इस समझौते का लक्ष्य 9 जुलाई तक एक अंतरिम समझौते पर पहुंचना है, क्योंकि इस तारीख तक अमेरिका द्वारा भारत पर लगाया गया 26% पारस्परिक टैरिफ निलंबित है। भारतीय पक्ष इस 26% अतिरिक्त टैरिफ से पूर्ण छूट की मांग कर रहा है, जो वर्तमान में कुछ भारतीय उत्पादों पर लागू है। भारत की ओर से कपड़ा, जूते, रत्न और आभूषण जैसे श्रम-गहन क्षेत्रों के लिए शुल्क-मुक्त पहुंच की मांग भी प्रमुखता से उठाई जा रही है। ये ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें भारत की विनिर्माण क्षमता और निर्यात क्षमता बहुत अधिक है।

Oअमेरिका की अपेक्षाएं:

दूसरी ओर, अमेरिका भारतीय बाजार में अपने विभिन्न उत्पादों के लिए टैरिफ में कमी चाहता है। इनमें औद्योगिक उत्पाद, ऑटोमोबाइल (विशेष रूप से इलेक्ट्रिक वाहन), शराब, पेट्रोकेमिकल उत्पाद, डेयरी उत्पाद और कृषि उत्पाद जैसे सेब, ट्री नट्स और जीएम (जेनेटिकली मॉडिफाइड) फसलें शामिल हैं। अमेरिका इन उत्पादों के लिए भारतीय बाजार तक बेहतर पहुंच चाहता है, जिससे उसके निर्यात को बढ़ावा मिल सके।

O वर्तमान परिदृश्य और भविष्य की दिशा:

वर्तमान में, अधिकांश भारतीय निर्यात अभी भी 10% अमेरिकी टैरिफ का सामना कर रहे हैं। इस अंतरिम समझौते से इन टैरिफों में कमी आने या उन्हें समाप्त करने की उम्मीद है, जिससे भारतीय वस्तुओं की अमेरिकी बाजार में प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ेगी। यह समझौता सीमित श्रेणियों की वस्तुओं और सेवाओं को कवर करेगा, लेकिन यह एक व्यापक व्यापार समझौते के लिए आधार तैयार करेगा। दोनों सरकारें 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को $500 बिलियन तक दोगुना करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य लेकर चल रही हैं।

जारी है उच्च-स्तरीय वार्ताएं:

केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने हाल ही में वाशिंगटन का दौरा किया और अमेरिकी वाणिज्य सचिव हावर्ड लुटनिक के साथ व्यापार वार्ता की प्रगति पर विस्तार से चर्चा की। भारत के मुख्य वार्ताकार, वाणिज्य विभाग में विशेष सचिव राजेश अग्रवाल ने भी हाल ही में वाशिंगटन का चार दिवसीय दौरा संपन्न किया है। इन वार्ताओं से संकेत मिलता है कि दोनों पक्ष समझौते को लेकर गंभीर हैं और इसे जल्द से जल्द अंतिम रूप देने के लिए प्रतिबद्ध हैं। सूत्रों के अनुसार, बातचीत सही दिशा में आगे बढ़ रही है और दोनों पक्ष समझौते को लेकर आशावान हैं।

टैरिफ समझौते से भारत की इन कंपनियों को होगा सीधा लाभ

यह समझौता भारत के कई प्रमुख क्षेत्रों और कंपनियों के लिए नए अवसर खोलेगा, जिससे उन्हें अमेरिकी बाजार में अपनी पहुंच बढ़ाने और राजस्व में वृद्धि करने में मदद मिलेगी।

1. कपड़ा और परिधान क्षेत्र:

यह क्षेत्र भारत के सबसे बड़े निर्यात क्षेत्रों में से एक है और रोजगार सृजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। टैरिफ में कमी से भारतीय कपड़ा और परिधान उत्पादों की अमेरिकी बाजार में प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ेगी।

* संभावित लाभार्थी कंपनियां:

* आदित्य बिड़ला फैशन एंड रिटेल लिमिटेड (ABFRL): विविध ब्रांडों के साथ परिधान क्षेत्र में एक प्रमुख खिलाड़ी।

* अरविंद लिमिटेड: कपड़ा विनिर्माण और परिधान क्षेत्र में एक बड़ी कंपनी।

* ट्राइडेंट लिमिटेड: होम टेक्सटाइल और यार्न में अग्रणी।

* वेलस्पन इंडिया लिमिटेड: टेक्सटाइल और होम फर्निशिंग में विशेषज्ञता।

2. जूते और चमड़ा उत्पाद:

भारतीय जूते और चमड़ा उद्योग के लिए भी अमेरिकी बाजार में शुल्क-मुक्त पहुंच एक बड़ा अवसर होगी।

* संभावित लाभार्थी कंपनियां:

* बाटा इंडिया लिमिटेड: भारत की सबसे बड़ी फुटवियर खुदरा विक्रेता।

* रिलैक्सो फुटवियर्स लिमिटेड: भारत की सबसे बड़ी फुटवियर निर्माता कंपनी।

* मिर्जा इंटरनेशनल लिमिटेड: चमड़े के उत्पादों और जूते के निर्यात में शामिल।

3. रत्न और आभूषण:

भारत रत्न और आभूषण का एक प्रमुख निर्यातक है। अमेरिकी टैरिफ में कमी से इस क्षेत्र को और अधिक बढ़ावा मिलेगा।

* संभावित लाभार्थी कंपनियां:

* टाइटन कंपनी लिमिटेड (तनिष्क): भारत की सबसे बड़ी आभूषण खुदरा विक्रेता।

* गीतांजलि जेम्स लिमिटेड: (हालांकि कंपनी वित्तीय संकट का सामना कर रही है, लेकिन यदि इसका पुनर्गठन होता है तो इसे लाभ हो सकता है)।

* राजेश एक्सपोर्ट्स लिमिटेड: सोने के गहनों के निर्माण और निर्यात में अग्रणी।

4. फार्मास्युटिकल्स:

हालांकि फार्मास्युटिकल्स पर टैरिफ पहले से ही कम हैं, किसी भी अतिरिक्त अनुकूलता से भारतीय जेनेरिक दवाओं के निर्यात को और बढ़ावा मिलेगा।

* संभावित लाभार्थी कंपनियां:

* सन फार्मास्युटिकल इंडस्ट्रीज लिमिटेड: भारत की सबसे बड़ी फार्मा कंपनी।

* डॉ. रेड्डीज लेबोरेटरीज लिमिटेड: जेनेरिक दवाओं और APIs की प्रमुख निर्माता।

* सिप्ला लिमिटेड: श्वसन, हृदय और अन्य चिकित्सीय क्षेत्रों में विशेषज्ञता।

* ल्यूपिन लिमिटेड: जेनेरिक दवाओं और ब्रांडेड फॉर्मूलेशन की अग्रणी निर्माता।

5. सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) और सॉफ्टवेयर सेवाएं:

हालांकि आईटी सेवाओं पर सीधे टैरिफ लागू नहीं होते, लेकिन व्यापार समझौते से दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंधों में सुधार होगा, जिससे भारतीय आईटी कंपनियों के लिए अमेरिकी ग्राहकों के साथ व्यापार करना आसान हो सकता है।

* संभावित लाभार्थी कंपनियां:

* टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS): भारत की सबसे बड़ी आईटी सेवा कंपनी।

* इंफोसिस लिमिटेड: वैश्विक स्तर पर आईटी परामर्श और सेवाओं की प्रदाता।

* विप्रो लिमिटेड: आईटी सेवाओं, परामर्श और व्यवसाय प्रक्रिया आउटसोर्सिंग में शामिल।

* एचसीएल टेक्नोलॉजीज लिमिटेड: इंजीनियरिंग और आर एंड डी सेवाओं सहित विविध आईटी सेवाएं।

6. कृषि उत्पाद (कुछ हद तक):

यदि अमेरिका भारतीय कृषि उत्पादों पर टैरिफ कम करता है, तो कुछ कृषि-आधारित निर्यातकों को लाभ हो सकता है।

* संभावित लाभार्थी कंपनियां:

* अग्रिम एग्रोटेक लिमिटेड: (कृषि उत्पादों के निर्यात में शामिल कंपनियों के लिए)।

* कुछ मसाला निर्यातक और समुद्री खाद्य निर्यातक।

यह अंतरिम समझौता दोनों देशों के बीच व्यापार और आर्थिक सहयोग को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जिससे आने वाले समय में कई भारतीय कंपनियों को अमेरिकी बाजार में अपनी उपस्थिति बढ़ाने का अवसर मिलेगा।