नई दिल्ली: वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई गुरुवार को
पूरी हो गई है। शीर्ष अदालत ने इस महत्वपूर्ण मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है, जिससे अब सभी की निगाहें न्यायालय के अंतिम निर्णय पर टिक गई हैं। यह फैसला इस बात पर गहरा प्रभाव डालेगा कि क्या वक्फ कानून 2025 पर अंतरिम रोक लगेगी या नहीं।
तीन दिवसीय मैराथन सुनवाई और मुख्य दलीलें
मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई और जस्टिस ए जी मसीह की बेंच ने तीन दिनों तक चली विस्तृत सुनवाई के बाद अपना निर्णय सुरक्षित रखा। इस दौरान केंद्र सरकार और याचिकाकर्ताओं के बीच तीखी बहस हुई, जिसमें वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और स्वामित्व से जुड़े महत्वपूर्ण कानूनी और धार्मिक पहलुओं को छुआ गया।
O याचिकाकर्ताओं की आपत्ति: धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन और “कब्जा करने वाला” कानून
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने जोरदार दलीलें पेश कीं। उन्होंने तर्क दिया कि वक्फ कानून 2025 मुसलमानों के धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करता है। सिब्बल ने इस कानून को वक्फ संपत्तियों पर “कब्जा करने वाला” बताया, खासकर उन प्रावधानों पर आपत्ति जताते हुए जो कलेक्टर को यह जांचने का अधिकार देते हैं कि कोई संपत्ति सरकारी भूमि है या नहीं। उनका तर्क था कि यह प्रक्रिया मनमानी है और इससे मुस्लिम समुदाय का संपत्ति से अधिकार खत्म हो सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद में केवल मुस्लिम सदस्यों को ही प्रबंधन की जिम्मेदारी दी जानी चाहिए, क्योंकि वक्फ इस्लाम में “अल्लाह के लिए” दान है।
O केंद्र सरकार का बचाव: “इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं” और सरकारी संपत्तियों की वापसी का अधिकार
केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने वक्फ कानून 2025 का पुरजोर बचाव किया और किसी भी अंतरिम आदेश का विरोध किया। मेहता ने अपनी दलील में कहा कि वक्फ एक इस्लामी विचार है, लेकिन यह इस्लाम का “मूल या अनिवार्य हिस्सा” नहीं है, बल्कि यह केवल इस्लाम में दान देने की एक व्यवस्था है। उन्होंने तर्क दिया कि “यूजर द्वारा वक्फ” (यानी लंबे समय से मुस्लिम उपयोग में रही संपत्ति को वक्फ मानना) एक मौलिक अधिकार नहीं है और यह केवल एक वैधानिक मान्यता है जिसे छीना जा सकता है। केंद्र ने स्पष्ट किया कि यदि कोई संपत्ति सरकारी है और उसे “वक्फ-बाय-यूजर” के तहत घोषित किया गया हो, तो सरकार उसे वापस लेने का कानूनी अधिकार रखती है। उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि कानून गैर-मुसलमानों को वक्फ दान देने से वंचित नहीं करता है, और वक्फ बोर्ड में अधिकतम दो गैर-मुस्लिम सदस्य हो सकते हैं।
अब सभी की निगाहें सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर टिकी हैं, जो यह तय करेगा कि वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 पर अंतरिम रोक लगेगी या नहीं और इसके दूरगामी परिणाम क्या होंगे।


