अफगानिस्तान ने भी चीन-पाकिस्तान के साथ मिलाया हाथ : आर्थिक गलियारा का अफगानिस्तान तक विस्तार,भारत के लिए नई भू-रणनीतिक चुनौती

OO चीन, पाकिस्तान और अफगानिस्तान (तालिबान सरकार) ने एक महत्वपूर्ण त्रिपक्षीय समझौते पर बुधवार को सहमति व्यक्त की है, जिसके तहत चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) को अफगानिस्तान तक विस्तारित किया जाएगा।

 

TTN Desk

 

यह फैसला बीजिंग में तीनों देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक के दौरान लिया गया, जिसने क्षेत्रीय भू-राजनीति में एक नया मोड़ ला दिया है और भारत के लिए नई रणनीतिक चुनौतियां खड़ी कर दी हैं।

 

O CPEC का विस्तार और इसका उद्देश्य

 

CPEC, चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसका उद्देश्य पाकिस्तान में बुनियादी ढांचे में सुधार करना और दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंधों को मजबूत करना है। इसमें सड़कें, रेलवे, बंदरगाह और ऊर्जा परियोजनाएं शामिल हैं। अब इस परियोजना का अफगानिस्तान तक विस्तार करने पर सहमति बनी है, जिसका मुख्य उद्देश्य अफगानिस्तान को क्षेत्रीय संपर्क और व्यापार से जोड़ना है, जिससे उसे आर्थिक लाभ मिल सके।

 

O त्रिपक्षीय बैठक और क्या हुआ निर्णय

 

बीजिंग में हुई त्रिपक्षीय बैठक में पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार, चीनी विदेश मंत्री वांग यी और अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी शामिल थे। इस बैठक के दौरान, मुख्य रूप से CPEC को अफगानिस्तान तक विस्तारित करने पर सहमति बनी। इसके अलावा, तीनों देशों ने क्षेत्रीय व्यापार को बढ़ावा देने और सुरक्षा सहयोग को मजबूत करने पर भी चर्चा की। यह भी तय किया गया कि अगली त्रिपक्षीय बैठक जल्द ही काबुल में आयोजित की जाएगी।

चीन का रणनीतिक दांव

यह समझौता ऐसे समय में आया है जब भारत के साथ तालिबान सरकार के संबंध कुछ हद तक बेहतर हो रहे थे। चीन इस कदम को भारत के साथ तालिबान की बढ़ती करीबी को देखते हुए एक रणनीतिक दांव के रूप में देख रहा है। चीन का लक्ष्य अफगानिस्तान में अपनी आर्थिक और राजनीतिक पकड़ मजबूत करना है, विशेष रूप से जब पश्चिमी देशों ने तालिबान सरकार को मान्यता देने में हिचकिचाहट दिखाई है।

 

O भारत के लिए क्या है चिंताएं…

 

CPEC का अफगानिस्तान तक विस्तार भारत के लिए कई गंभीर चिंताएं पैदा करता है:

 

* संप्रभुता का उल्लंघन: भारत शुरू से ही CPEC का विरोध करता रहा है क्योंकि इसका एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) से होकर गुजरता है, जिसे भारत अपना अभिन्न अंग मानता है। अब इसका अफगानिस्तान तक विस्तार भारत की संप्रभुता के लिए एक और चुनौती है।

 

* रणनीतिक चुनौती: CPEC अफगानिस्तान को चीन और पाकिस्तान पर अधिक निर्भर बना सकता है, जिससे क्षेत्र में भारत का प्रभाव कम हो सकता है। यह मध्य एशिया तक पहुंचने के लिए भारत के प्रयासों को भी जटिल बना सकता है, क्योंकि यह एक वैकल्पिक मार्ग प्रदान करेगा जो पाकिस्तान से होकर गुजरता है।

 

* सुरक्षा निहितार्थ: चीन-पाकिस्तान-अफगानिस्तान की यह धुरी भारत की सुरक्षा और प्रभाव क्षेत्र पर सीधा असर डाल सकती है, खासकर जब भारत का पहले से ही चीन और पाकिस्तान के साथ सीमा विवाद है।

 

* तालिबान की स्थिति: अफगानिस्तान की तालिबान सरकार ने चीन को आश्वासन दिया है कि वह किसी भी ताकत को चीन के खिलाफ अपनी जमीन का इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं देगी, जो भारत के लिए एक चिंता का विषय है।

Oभविष्य की संभावनाएं

यह समझौता क्षेत्र में भू-राजनीतिक समीकरणों को बदल सकता है। जहां एक ओर यह अफगानिस्तान को आर्थिक रूप से लाभ पहुंचाने और उसे क्षेत्रीय संपर्क से जोड़ने का दावा करता है, वहीं दूसरी ओर यह भारत के लिए सुरक्षा और रणनीतिक चुनौतियां भी पैदा करता है। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह त्रिपक्षीय समझौता क्षेत्र में किस प्रकार के नए गठबंधन और तनाव को जन्म देता है।