OO अंडमान सागर में गैस और तेल के बड़े भंडार मिलने की संभावना बनी है यदि यह हुआ तो भारत की ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक विकास के लिए गेमचेंजर साबित हो सकती है।
TTN Desk
पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने सोमवार को एक न्यूज एजेंसी से बातचीत में बताया है कि भारत अंडमान क्षेत्र में एक “परिवर्तनकारी” तेल भंडार की खोज के कगार पर है, जिसकी तुलना गयाना (Guyana) में हुई विशाल खोज से की जा रही है। गयाना दुनिया के 17वें सबसे बड़े कच्चे तेल भंडार वाले देशों में से एक है, जहां लगभग 11.6 अरब बैरल तेल और गैस का भंडार है।
केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा है कि अंडमान सागर में तेल और गैस के बड़े भंडार मिलने के “सकारात्मक संकेत” मिले हैं।
O मंत्री ने क्यों कहा ये “गुयाना मोमेंट”
इस खोज को पेट्रोलियम मंत्री ने भारत के लिए “गुयाना मोमेंट” कहा है, जिसका अर्थ है कि यह देश की अर्थव्यवस्था में एक बड़ा बदलाव ला सकता है, जैसा कि गयाना में हुआ।
O यदि भंडार मिला तो अर्थव्यवस्था हो सकती है 20 ट्रिलियन डॉलर की
अनुमान है कि अगर अंडमान में गयाना के बराबर भंडार मिलता है, तो यह भारत की अर्थव्यवस्था को $3.7 ट्रिलियन से $20 ट्रिलियन तक बढ़ा सकता है।
O आत्मनिर्भरता की ओर होगा कदम
यह खोज भारत को कच्चे तेल के आयात पर अपनी निर्भरता कम करने और ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने में मदद करेगी। भारत वर्तमान में अपनी 85% से अधिक कच्चे तेल की ज़रूरतों को आयात करता है।
O खोज में हुई बड़े भंडार की पुष्टि
ओएनजीसी (ONGC) और ऑयल इंडिया लिमिटेड (OIL) जैसी तेल कंपनियां अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में सर्वेक्षण और ड्रिलिंग का काम तेज़ी से कर रही हैं। कुछ कुओं में तेल और गैस के भंडार मिलने की पुष्टि हुई है, हालांकि विस्तृत आकलन अभी जारी है।
O पहले की खोजें
मंत्री ने सूर्यमणि और नीलमणि जैसे स्थानों पर हाल की कुछ छोटी खोजों का भी जिक्र किया, जहां तेल और गैस के भंडार मिले हैं।
यह खबर भारत के लिए एक बड़ी उम्मीद जगाती है और देश की ऊर्जा परिदृश्य को पूरी तरह से बदल सकती है।
O सरकार की तरफ से सबसे बड़ी निविदा जारी
हरदीप पुरी ने यह भी कहा कि सरकार ने अब तक की सबसे बड़ी निविदा जारी की है। लगभग 2.5 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को निविदा के लिए प्रस्ताव दिया गया है। भारत के sedimentary basins में लगभग 42 बिलियन टन तेल और गैस के बराबर की क्षमता है। समुद्री खनन में बहुत अधिक पूंजी लगती है। इसलिए भारत को अपने समुद्रों के नीचे छिपी क्षमता का दोहन करने में इतना समय लगा।


