✍🏼 मनोज यू शर्मा
हाल ही में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने कलेक्टर कॉन्फ्रेंस में जिला कलेक्टरों को सुबह सड़कों और गलियों में उतरकर सफाई व्यवस्था की निगरानी करने का निर्देश दिया। यह निर्देश न केवल प्रशासनिक जवाबदेही के ढांचे पर सवाल उठाता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि शासन की प्राथमिकताएं और जिम्मेदारियों का बंटवारा कितना असंतुलित हो चुका है। सवाल यह है कि क्या कलेक्टर, जो जिले के सर्वोच्च प्रशासनिक अधिकारी हैं, अब सफाई दरोगा की भूमिका में ढकेले जाएंगे? यदि हां, तो फिर नगर निगम आयुक्तों, जोन कमिश्नरों, मुख्य नगरपालिका अधिकारियों और शहरी विकास विभाग की क्या जरूरत?
0 जनप्रतिनिधियों की नाकामी का ठीकरा कलेक्टरों पर*
इस निर्देश ने अनजाने में मुख्यमंत्री की अपनी ही पार्टी, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी), के जनप्रतिनिधियों की कार्यक्षमता पर सवालिया निशान लगा दिया। छत्तीसगढ़ के अधिकांश नगर निगमों में बीजेपी के महापौर ,नगर पालिका अध्यक्ष और पार्षद बहुसंख्यक हैं। यदि सफाई व्यवस्था इतनी चरमराई हुई है कि कलेक्टरों को सुबह सात बजे सड़कों पर उतरना पड़ रहा है, तो यह उन जनप्रतिनिधियों की नाकामी को उजागर करता है, जिन्हें जनता ने चुना और जिनके पास नगरीय प्रशासन की सीधी जिम्मेदारी है। यह सवाल उठता है कि जवाबदेही मांगने का दायित्व क्या नगरीय प्रशासन और विकास विभाग के मंत्री और विभागीय सचिव का नहीं था?
0 कलेक्टरों की भूमिका का दुरुपयोग*
कलेक्टरों की प्राथमिक जिम्मेदारी जिले के समग्र विकास, नीति कार्यान्वयन और विभिन्न विभागों के बीच समन्वय सुनिश्चित करना है। यदि उन्हें अतिरिक्त जिम्मेदारी देनी ही थी, तो इसे शासकीय शिक्षण संस्थानों और अस्पतालों की बदहाल स्थिति सुधारने की दी जा सकती थी। शहरों में सड़कों तक फैले अतिक्रमण को हटाने का जिम्मा सौंपा जा सकता था। ये ऐसे क्षेत्र हैं, जहां कलेक्टर संबंधित अधिकारियों के माध्यम से प्रभावी बदलाव ला सकते हैं। लेकिन सुबह-सुबह सड़कों पर सफाई की निगरानी करने का निर्देश न केवल अव्यवहारिक है, बल्कि यह प्रशासनिक ढांचे की मूल भावना के खिलाफ भी जाता है।
0 मीडिया की चुप्पी और नौकरशाही का बढ़ता दबदबा
इस पूरे प्रकरण में सबसे निराशाजनक भूमिका मीडिया की रही है। एक भी मीडिया हाउस ने न तो सरकार से इस फैसले पर सवाल उठाए, न ही इसे कटघरे में खड़ा किया। यह चुप्पी न केवल पत्रकारिता की जवाबदेही पर सवाल उठाती है, बल्कि यह भी संकेत देती है कि नौकरशाही का दबदबा अब बीजेपी शासित राज्यों में भी बढ़ रहा है। शायद मुख्यमंत्री इस निर्देश के जरिए कोई संदेश देना चाहते हैं, लेकिन यह संदेश प्रशासनिक व्यवस्था को और जटिल करने वाला प्रतीत होता है।
0 जवाबदेही का सही ढांचा जरूरी
छत्तीसगढ़ की जनता को एक ऐसी व्यवस्था की जरूरत है, जो पारदर्शी, जवाबदेह और प्रभावी हो। नगरीय निकायों को उनकी जिम्मेदारियों के लिए जवाबदेह बनाया जाना चाहिए, न कि कलेक्टरों को ऐसी भूमिकाओं में धकेला जाए, जो उनकी प्राथमिक जिम्मेदारियों से भटकाने वाली हों। सरकार को चाहिए कि वह जवाबदेही का सही ढांचा स्थापित करे और प्रशासनिक संसाधनों का उपयोग उनकी मूल भूमिका के अनुरूप करे। राज्य में कांग्रेस को सत्ता से हटा कर आई बीजेपी सरकार के दो साल पूरे हो चुके है और अब यह अजब-गजब निर्देशों का समय नहीं, बल्कि सुशासन और स्पष्ट नीतियों का समय है।