TTN Desk
हाल ही में हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में हुई एक अनोखी शादी ने सदियों पुरानी जोड़ीदारा प्रथा को फिर से चर्चा में ला दिया है। शिलाई गांव में सुनीता चौहान की शादी दो भाइयों, प्रदीप और कपिल नेगी, से हुई। इस घटना ने एक बार फिर इस प्रथा की सामाजिक, कानूनी और नैतिक पहलुओं पर बहस छेड़ दी है।
0 क्या है जोड़ीदारा प्रथा?
जोड़ीदारा (या जाजड़ा) प्रथा हिमाचल के हट्टी समुदाय की एक प्राचीन परंपरा है, जिसमें एक महिला एक ही परिवार के दो या दो से अधिक सगे भाइयों से शादी करती है।
* विवाह की प्रक्रिया: इस प्रथा में बारात लड़की के घर से लड़के के घर जाती है। शादी के दौरान ‘सिन्ज’ नामक एक रस्म होती है, जिसमें दुल्हन और दूल्हे आग के सामने कसमें खाते हैं।
* उद्देश्य: इस प्रथा का मुख्य उद्देश्य परिवार की संपत्ति को बँटने से रोकना और संयुक्त परिवार की एकता को बनाए रखना है।
0 प्रथा की उत्पत्ति के प्रमुख कारण
यह परंपरा कई सामाजिक और आर्थिक कारणों से शुरू हुई थी:
* आर्थिक कारण: पहाड़ी इलाकों में कृषि योग्य भूमि बहुत कम होती है। इस प्रथा से परिवार की ज़मीन का बँटवारा रुक जाता है और संपत्ति एक ही परिवार के पास रहती है।
* सामाजिक एकता: यह परिवार को एक साथ जोड़े रखती है और महिला को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करती है।
* ऐतिहासिक संदर्भ: माना जाता है कि इस प्रथा की जड़ें महाभारत में द्रौपदी के पांच पांडवों से विवाह और तिब्बती संस्कृति से जुड़ी हैं।
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* लिंगानुपात: ऐतिहासिक रूप से, इस क्षेत्र में पुरुषों की तुलना में महिलाओं की संख्या कम थी, जिससे बहुपति विवाह एक सामाजिक आवश्यकता बन गया।
0 सुनीता की शादी से छिड़ी बहस
12-14 जुलाई, 2025 को सुनीता चौहान ने शिलाई में प्रदीप (जो एक सरकारी कर्मचारी हैं) और कपिल (जो हॉस्पिटैलिटी पेशेवर हैं) से शादी की। यह शादी इसलिए चर्चा में आई क्योंकि:
* यह तीनों की सहमति से हुई।
* शादी में सैकड़ों मेहमानों ने भाग लिया, जो इसकी सामाजिक स्वीकृति को दर्शाता है।
* यह घटना दर्शाती है कि यह प्रथा आज भी कुछ समुदायों में जीवित है, भले ही इसका प्रचलन कम हो गया हो।
0।कानूनी स्थिति और विवाद के बिंदु
* हिंदू विवाह अधिनियम: भारत का हिंदू विवाह अधिनियम बहुपति विवाह को अवैध मानता है। हालाँकि, हट्टी समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिलने के कारण इस प्रथा पर कानूनी छूट मिलती है।
* स्थानीय मान्यता: हिमाचल प्रदेश के राजस्व कानून और हाईकोर्ट ने भी कुछ हद तक इस प्रथा को मान्यता दी है।
* सुप्रीम कोर्ट का रुख: सुप्रीम कोर्ट आमतौर पर समुदायों की प्रथागत परंपराओं में हस्तक्षेप नहीं करता है, जब तक कि वे किसी के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन न करें।
यह प्रथा आज भी बहस का विषय बनी हुई है। जहाँ एक तरफ इसे सांस्कृतिक विरासत और पारिवारिक एकता का प्रतीक माना जाता है, वहीं दूसरी तरफ आधुनिक समाज में इसे लैंगिक समानता के विरुद्ध और कानूनी रूप से जटिल माना जाता है। शिक्षा और शहरीकरण के कारण इस प्रथा का प्रचलन धीरे-धीरे कम हो रहा है, लेकिन सुनीता, प्रदीप और कपिल की शादी ने एक बार फिर परंपरा और आधुनिकता के बीच के इस टकराव को उजागर कर दिया है।