TTN खास..आईजी डांगी मामला: नए रहस्यों की उघड़ती परतें और सच्चाई की तलाश,सामने आ रहे सनसनीखेज तथ्य

00 चौंकाने वाला है पीड़िता का अतीत

✍🏼 मनोज शर्मा

छत्तीसगढ़ पुलिस और प्रशासनिक तंत्र एक बार फिर गंभीर आरोपों के साये में है। आईजी रतनलाल डांगी पर सब-इंस्पेक्टर की पत्नी द्वारा लगाए गए यौन शोषण, शारीरिक, मानसिक और आर्थिक प्रताड़ना के आरोपों ने सिस्टम को कटघरे में खड़ा कर दिया है। डांगी इसे ब्लैकमेलिंग का षड्यंत्र बताते हैं, जबकि मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने जांच में जो भी दोषी पाया गया उस पर सख्ती का वादा किया है।हालांकि बिना निलंबन के शुरू हुई जांच और इसके पीछे की जटिलताएं सवाल उठाती हैं। यह मामला न केवल पुलिस, बल्कि समूचे प्रशासनिक ढांचे की नैतिकता और पारदर्शिता की कसौटी बन गया है।

0 पीड़िता की पृष्ठभूमि पर विवादों का साया,परिजनों के खिलाफ ही शिकायतें

पीड़ित महिला, जो सामान्य जाति से हैं और योग प्रशिक्षिका बताई जाती हैं, ने सब-इंस्पेक्टर से प्रेम विवाह किया था, जब वह आरक्षक थे। सामाजिक बाधाओं के बावजूद चौंकाने वाली बात यह कि विवाह के लिए दबाव वाली दृढ़ता सामान्य जाति की होने के बावजूद उसी ने दिखाई।

अब इस मामले का बाद जब उसकी प्रोफाइल को खंगाला गया तब उक्त बात सामने आई।यह भी कि पिता शासकीय विभाग से अधिकारी के रूप में रिटायर्ड हुआ। चौंकाने वाला तथ्य यह है कि डांगी के खिलाफ उनकी शिकायत कोई पहली शिकायत नहीं है। वह पहले भी अपने मायके के करीबियों, यहां तक कि अपने निकट संबंधियों पर छेड़छाड़ और अनाचार के आरोप लगा चुकी हैं। इन शिकायतों में उन्होंने विवाह के बाद अपने उपनाम का उपयोग कर एससी-एसटी एक्ट की धाराएं जोड़कर मामलों को गंभीर बनाया। यह व्यवहार उनकी शिकायतों को अपने पक्ष में मोड़ने की आदत को दर्शाता है। हालांकि, इसका यह अर्थ नहीं कि वर्तमान मामले में वह दोषी या निर्दोष हैं। हां उनकी यह पृष्ठभूमि मामले को जटिल बनाती है। हमने कानूनी प्रावधानों का सम्मान करते हुए नियमों के तहत उनकी पहचान गोपनीय रखी गई है।

0 डांगी का दावा वे ब्लैकमेलिंग के शिकार

2003 बैच के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी रतनलाल डांगी ने इन आरोपों को खारिज करते हुए इसे ब्लैकमेलिंग के सुनियोजित जाल से जोड़ा है। डीजीपी को दी शिकायत में उन्होंने दावा किया कि महिला ने उनके जीवन को नर्क बना दिया है।पारिवारिक मैटर पर डायरेक्शन देती है।निजी पलों को नियंत्रित कर दबाव डालती है।उनके नाम से उगाही और ब्लैकमेलिंग कर रही है। डांगी ने महिला से ताल्लुक को स्पष्ट रूप से नकारा नहीं, जो मामले को और उलझाता है। उनकी शिकायत में धमकियों और वित्तीय लाभ के लिए दबाव की बात कही गई है। डांगी जांच में सहयोग का वादा करते हैं, लेकिन इसे सुनियोजित साजिश मानते हैं। उनकी प्रोफाइल, जिसमें योग प्रेरक वीडियो और तस्वीरें शामिल हैं, इस मामले के बाद चर्चा में है। दिलचस्प यह है कि जिन आला पुलिस अधिकारियों के खिलाफ ऐसी शिकायतें हुईं, उनमें से अधिकांश कभी न कभी कोरबा में पदस्थ रहे हैं, जो इस क्षेत्र की प्रशासनिक गतिशीलता पर सवाल उठाता है।

0 जांच की प्रक्रिया और निष्पक्षता पर संदेह

मुख्यमंत्री ने सख्त कार्रवाई का भरोसा दिलाया है, लेकिन जांच का ढांचा सवालों के घेरे में है। आईजी आनंद छाबड़ा (2011 बैच) और डीआईजी मिलना कुर्रे की समिति डांगी से रैंक में जूनियर है। बिना निलंबन के शुरू हुई यह जांच कितनी निष्पक्ष होगी, यह बड़ा सवाल है। सूत्रों के अनुसार, दोनों पक्षों के बयान और डिजिटल साक्ष्य की पड़ताल होगी। जो एक समय लेने वाला काम है। विभिन्न स्तरों पर सक्रिय प्रयासों के बावजूद, सच्चाई सामने आने की संभावना कम है, क्योंकि उच्च पदस्थ हित चाहे वो विभागीय छवि,शासन की कसौटी या फिर निजी लाभ हानि से जुड़े हैं।

0नौकरशाही का पतन: पुलिस और प्रशासन की जवाबदेही

यह मामला छत्तीसगढ़ की नौकरशाही और प्रशासनिक ढांचे के पतन की कहानी में एक नया अध्याय है। दो राष्ट्रपति पुलिस मेडल प्राप्त डांगी जैसे अधिकारी पर आरोप न केवल व्यक्तिगत, बल्कि पूरे पुलिस और प्रशासनिक तंत्र की विश्वसनीयता पर चोट करते हैं। ट्रांसफर-पोस्टिंग का खेल, जहां शक्ति का दुरुपयोग आम है, इस मामले की जड़ में कथित उगाही को ले कर नजर आता है। महिला की पिछली शिकायतें और उनकी रणनीति मामले को जटिल बनाती हैं, लेकिन डांगी की प्रोफाइल भी अब सवालों के घेरे में है। यह घटना महिलाओं की सुरक्षा के कानूनी ढांचे को भी चुनौती देती है, जहां पीड़िता की गोपनीयता तो बरकरार रहती है, लेकिन आरोप सही गलत ये बाद में साफ होता है किन्तु आरोपी की प्रतिष्ठा पर मामले के खुलासे के साथ ही तत्काल असर पड़ता है।

0 न्याय की राह में पारदर्शिता जरूरी

आईजी डांगी मामला व्यक्तिगत विवाद से कहीं अधिक है; यह पुलिस और प्रशासन में सुधारों की जरूरत को रेखांकित करता है। ब्लैकमेलिंग हो या शोषण, जांच को पारदर्शी और स्वतंत्र होना होगा। मुख्यमंत्री का सख्त रुख स्वागतयोग्य है, लेकिन बिना निलंबन की प्रक्रिया संदेह पैदा करती है। कोरबा से जुड़े अधिकारियों के खिलाफ बार-बार ऐसी शिकायतें प्रशासनिक प्रक्रियाओं पर गंभीर सवाल उठाती हैं। समाज को यह सुनिश्चित करना होगा कि न्याय निष्पक्ष हो, न कि पद या प्रभाव से प्रभावित। सच्चाई सामने लाकर ही विभागीय और प्रशासनिक नैतिकता बहाल होगी, और ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रुकेगी। छत्तीसगढ़ पुलिस और प्रशासन को अपनी आंतरिक सफाई पर ध्यान देना होगा, ताकि जनता का भरोसा कायम रहे।