00 सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में मतदाता सूची से हटाए गए 65 लाख लोगों की जानकारी सार्वजनिक करने और प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के लिए कड़े निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने यह सुनिश्चित करने की कोशिश की है कि कोई भी मतदाता अपने वोट देने के अधिकार से वंचित न हो। इस मामले की अगली सुनवाई 22 अगस्त 2025 को होगी, जिसमें चुनाव आयोग की अनुपालन रिपोर्ट की समीक्षा की जाएगी।
TTN Desk
हार में विधानसभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग ने मतदाता सूची को शुद्ध करने के लिए विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) प्रक्रिया शुरू की थी। इस प्रक्रिया के तहत 1 सितंबर 2025 को पहली ड्राफ्ट मतदाता सूची जारी की गई, जिसमें 65 लाख मतदाताओं के नाम हटा दिए गए। चुनाव आयोग के अनुसार, इनमें से:
22 लाख लोग मृत घोषित किए गए।
36 लाख लोग या तो दूसरी जगह चले गए या उनका पता नहीं चला।
7 लाख लोगों के नाम दोहरे (डुप्लिकेट) पाए गए।
इस बड़े पैमाने पर नाम हटाने की प्रक्रिया पर विपक्षी दलों, खासकर राजद (राष्ट्रीय जनता दल) और कांग्रेस, ने सवाल उठाए। उनका आरोप था कि यह प्रक्रिया गैर-पारदर्शी है और गरीब, कमजोर वर्गों के मतदाताओं को जानबूझकर वोट देने के अधिकार से वंचित किया जा रहा है। इस मुद्दे को लेकर याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दायर की गईं, जिनमें प्रक्रिया की निष्पक्षता और पारदर्शिता पर सवाल उठाए गए।
0 सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई और आदेश
14 अगस्त 2025 को सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की। कोर्ट ने चुनाव आयोग को निम्नलिखित निर्देश दिए:
0 65 लाख हटाए गए मतदाताओं की सूची सार्वजनिक करें
कोर्ट ने आदेश दिया कि 19 अगस्त 2025 तक जिला स्तर पर मतदाता सूची से हटाए गए 65 लाख लोगों की पूरी सूची और उनके नाम हटाने के कारण (जैसे मृत्यु, प्रवास, या दोहराव) को जिला निर्वाचन अधिकारियों की वेबसाइट पर अपलोड किया जाए।
सूची को इस तरह से अपलोड करना होगा कि प्रत्येक मतदाता अपने वोटर आईडी (EPIC) नंबर के जरिए अपना नाम खोज सके। यह सूची पीडीएफ फॉर्मेट में नहीं, बल्कि सर्चेबल डेटा के रूप में होनी चाहिए।
सूची को बूथ स्तर के अधिकारियों (BLO) के कार्यालयों, प्रखंड और पंचायत स्तर पर भी प्रदर्शित करना होगा।
0 पारदर्शिता और प्रचार-प्रसार
कोर्ट ने जोर दिया कि इस सूची को व्यापक प्रचार-प्रसार के साथ सार्वजनिक किया जाए। इसके लिए स्थानीय समाचार पत्रों, टीवी, और अन्य माध्यमों के जरिए विज्ञापन दिए जाएं, ताकि प्रभावित लोग समय पर जानकारी प्राप्त कर सकें।
कोर्ट ने कहा कि नागरिकों का यह मौलिक अधिकार है कि उन्हें पता चले कि उनका नाम सूची से क्यों हटाया गया। प्रक्रिया को नागरिक-हितैषी और सरल रखने का निर्देश दिया गया।
0 आधार कार्ड को दस्तावेज के रूप में स्वीकार करें
जिन लोगों के नाम गलत तरीके से हटाए गए हैं, उन्हें आधार कार्ड या अन्य दस्तावेजों (जैसे वोटर आईडी, राशन कार्ड) के साथ दावा (क्लेम) दायर करने की अनुमति होगी। यह निर्देश इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि याचिकाकर्ताओं ने आधार को सबूत के रूप में न मानने पर सवाल उठाए थे।
0 22 अगस्त तक देनी होगीअनुपालन रिपोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को 22 अगस्त 2025 तक इस आदेश के पालन की रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया। अगली सुनवाई 22 अगस्त को होगी, जिसमें प्रगति की समीक्षा की जाएगी।
0 पारदर्शिता पर सख्त रुख
कोर्ट ने टिप्पणी की कि मतदाता सूची से नाम हटाना केवल विशेष परिस्थितियों में ही स्वीकार्य है और इसके लिए मानक प्रक्रिया का पालन होना चाहिए।
जस्टिस बागची ने कहा, “अगर कोई व्यक्ति अनपढ़ है, तो भी उसे अपने पड़ोसियों या परिवार के जरिए जानकारी मिलनी चाहिए।” जस्टिस सूर्यकांत ने जोड़ा, “हम नहीं चाहते कि नागरिकों के अधिकार राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं पर निर्भर हों।”
0 क्या रही राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
तेजस्वी यादव (राजद): उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को बड़ी जीत बताया है।उन्होंने इस प्रक्रिया को गैर-पारदर्शी बताया और कहा कि अगर गड़बड़ियां नहीं सुधारी गईं, तो वे फिर सुप्रीम कोर्ट जाएंगे। उन्होंने 35 विपक्षी नेताओं को पत्र लिखकर समर्थन मांगा।
वीणा देवी (सांसद, वैशाली): उन्होंने माना कि मतदाता सूची की शुद्धता जरूरी है, लेकिन प्रक्रिया पारदर्शी होनी चाहिए। उनके दोहरे वोटर आईडी के आरोप पर उन्होंने सफाई दी कि यह कर्मियों की गलती थी।
कांग्रेस: कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का स्वागत किया और इसे लोकतंत्र की जीत बताया।
0 क्या है इस आदेश का महत्व और प्रभाव
यह आदेश बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले मतदाता सूची की शुद्धता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
65 लाख मतदाताओं के नाम हटाए जाने से बिहार के चुनावी समीकरण प्रभावित हो सकते हैं, क्योंकि यह कुल मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा है।
कोर्ट का आधार कार्ड को मान्य करने का निर्देश उन लोगों के लिए राहत है, जिनके नाम गलत तरीके से हटाए गए हैं।
यह मामला चुनाव आयोग की प्रक्रियाओं और उनकी निष्पक्षता पर सवाल उठाता है, जिसका असर भविष्य में अन्य राज्यों में भी मतदाता सूची पुनरीक्षण पर पड़ सकता है।