00 केंद्र सरकार ने गुरुवार, 24 जुलाई 2025 को राज्यसभा में स्पष्ट किया कि भारतीय संविधान की प्रस्तावना से ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों को हटाने या उनमें किसी भी प्रकार का बदलाव करने की कोई योजना नहीं है।
TTN Desk
केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने विपक्षी सांसदों के सवालों के जवाब में यह बात कही। यह बयान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और कुछ अन्य नेताओं द्वारा इन शब्दों को हटाने की मांग के बाद उत्पन्न राजनीतिक चर्चा के संदर्भ में आया है।
‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द 1976 में 42वें संविधान संशोधन के माध्यम से संविधान की प्रस्तावना में जोड़े गए थे, जब देश में आपातकाल लागू था। ये शब्द भारत को एक समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष गणराज्य के रूप में परिभाषित करते हैं, जो सामाजिक-आर्थिक समानता और धार्मिक तटस्थता को रेखांकित करते हैं। हाल ही में, आरएसएस के महासचिव दत्तात्रेय होसबाले और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ जैसे कुछ प्रमुख व्यक्तियों ने इन शब्दों की प्रासंगिकता पर सवाल उठाए थे। होसबाले ने जून 2025 में एक कार्यक्रम में कहा था कि इन शब्दों को आपातकाल के दौरान जोड़ा गया था और इन पर पुनर्विचार की आवश्यकता है।
0 धनखड़ ने कहा था कि ये सनातन भावना का अपमान
इसी तरह, तत्कालीन उपराष्ट्रपति धनखड़ ने 29 जून 2025 को एक बयान में कहा था कि ये शब्द “संविधान की प्रस्तावना में नासूर बन गए हैं” और इसे सनातन भावना का अपमान बताया। इन बयानों के बाद विपक्षी दलों ने बीजेपी और आरएसएस पर संविधान के मूल ढांचे को बदलने का आरोप लगाया था।
0 सरकार ने स्पष्ट किया रुख ” ऐसा करने का कोई इरादा नहीं ”
कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने राज्यसभा में एक लिखित जवाब में कहा, “सरकार ने संविधान की प्रस्तावना से ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों को हटाने के लिए कोई औपचारिक कानूनी या संवैधानिक प्रक्रिया शुरू नहीं की है, और न ही ऐसा करने का कोई इरादा है।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि कुछ सामाजिक संगठनों या व्यक्तियों द्वारा इस तरह की चर्चाएं सार्वजनिक या राजनीतिक मंचों पर हो सकती हैं, लेकिन ये सरकार के आधिकारिक रुख को प्रतिबिंबित नहीं करतीं।
मेघवाल ने यह भी स्पष्ट किया कि संविधान में किसी भी संशोधन के लिए संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत और व्यापक विचार-विमर्श की आवश्यकता होती है, और सरकार इस तरह की कोई प्रक्रिया शुरू करने की योजना नहीं बना रही है।
0 सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा था “इन्हें हटाना उचित नहीं”
नवंबर 2024 में, सुप्रीम कोर्ट ने संविधान की प्रस्तावना से इन शब्दों को हटाने की मांग वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया था। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने कहा कि ये शब्द संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा हैं और इन्हें हटाना उचित नहीं होगा। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि भारतीय संदर्भ में ‘समाजवादी’ शब्द का अर्थ एक कल्याणकारी राज्य है, जो निजी क्षेत्र के विकास में बाधा नहीं डालता, और ‘धर्मनिरपेक्षता’ संविधान के मूल ढांचे का अभिन्न अंग है।
0 क्या कहा विपक्षी नेताओं ने
विपक्षी दलों ने सरकार के इस बयान का स्वागत किया है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा, “यह बयान संविधान के मूल्यों की रक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द भारत के लोकतांत्रिक और समावेशी चरित्र को दर्शाते हैं।” समाजवादी पार्टी के नेता राम गोपाल यादव ने कहा कि यह बयान उन ताकतों को जवाब है जो संविधान के साथ छेड़छाड़ की कोशिश कर रहे थे।
0 संविधान के मूल ढांचे का सरकार करती है सम्मान : त्रिवेदी
वहीं, बीजेपी के कुछ नेताओं ने इस मुद्दे पर चुप्पी साधी है, जबकि अन्य ने सरकार के रुख का समर्थन किया। बीजेपी सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने कहा, “संविधान हमारा मार्गदर्शक है, और सरकार इसके मूल ढांचे का सम्मान करती है।”