संघ प्रमुख की खरी खरी : शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा आम आदमी की पहुंच से बाहर,कॉरपोरेट कल्चर हावी…जानिए और क्या कहा..?

00 आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने 10 अगस्त 2025 को इंदौर में माधव सृष्टि कैंसर केयर सेंटर के उद्घाटन समारोह में शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्रों की वर्तमान स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त की। उन्होंने इन क्षेत्रों के व्यावसायीकरण, आम आदमी की पहुंच से दूर होने और केंद्रीकरण जैसी समस्याओं पर प्रकाश डाला।

TTN Desk

संघ प्रमुख मोहन भागवत ने अपने उद्बोधन में एक तरह से देश में वर्तमान शिक्षा एवं स्वास्थ्य व्यवस्था पर सीधे करारा प्रहार कर सरकार को ही कटघरे में खड़ा कर दिया।उन्होंने कहा कि शिक्षा और स्वास्थ्य, जो कभी सेवा के रूप में देखे जाते थे, अब पूरी तरह से व्यावसायिक हो गए हैं। इससे इन सेवाओं की मूल भावना प्रभावित हुई है।
उन्होंने बताया कि पहले चिकित्सा का उद्देश्य सेवा और शिक्षा का ज्ञान प्रदान करना था, लेकिन अब ये लाभ कमाने के साधन बन गए हैं। उदाहरण देते हुए कहा, “पहले इन क्षेत्रों में काम सेवा भाव से होता था, लेकिन अब वे व्यावसायिक हो गए हैं।”

0 आम आदमी की पहुंच से बाहर हो गई है शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा

इस व्यावसायीकरण के कारण केंद्रीकरण बढ़ा है, जिससे शिक्षा और स्वास्थ्य दोनों ही आम लोगों के लिए महंगे और दूर हो गए हैं। उन्होंने कॉर्पोरेट कल्चर को जिम्मेदार ठहराया।भागवत ने जोर देकर कहा कि शिक्षा और स्वास्थ्य अब आम आदमी की आर्थिक और भौगोलिक पहुंच से बाहर हो गए हैं, जो समाज की बुनियादी जरूरतें हैं।

0 महंगाई और दुर्गमता की समस्या

उन्होंने उल्लेख किया कि अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं अब इतनी महंगी हैं कि सामान्य व्यक्ति इन्हें वहन नहीं कर सकता। उदाहरण के रूप में, “रोगियों को इलाज के लिए बड़ी रकम खर्च करनी पड़ती है और लंबी दूरी तय करनी पड़ती है। स्वास्थ्य सेवा चिंता का विषय नहीं बननी चाहिए।”

0 दिए अपने व्यक्तिगत अनुभव से उदाहरण

उन्होंने अपने बचपन की घटना साझा की, जहां उनके शिक्षक ने उन्हें जंगल की जड़ी-बूटियों से इलाज किया था, जो सेवा भाव का प्रतीक था। आज ऐसी व्यक्तिगत देखभाल की कमी है।
उन्होंने स्वास्थ्य सेवाओं के केंद्रीकरण पर चिंता जताई, जो केवल कुछ चुनिंदा शहरों तक सीमित है, जिससे ग्रामीण और दूरदराज के लोगों को परेशानी होती है।

0 अब भी केवल 8-10 शहरों में उन्नत सुविधाएं

भागवत ने कहा कि अच्छी कैंसर उपचार सुविधाएं देश के केवल आठ से दस शहरों में उपलब्ध हैं, जिससे मरीजों को यात्रा और अतिरिक्त खर्च वहन करना पड़ता है। “केंद्रीकरण के कारण आवास, भोजन आदि के खर्च भी जुड़ जाते हैं।”

0 शिक्षा के क्षेत्र में भी समान समस्या

शिक्षा के मामले में भी छात्रों को अच्छी शिक्षा के लिए दूर जाना पड़ता है, जो पहले प्रत्येक प्रांत में 70-70 केंद्रों के माध्यम से सुलभ थी।
भागवत ने सस्ती, सुलभ और सेवा-आधारित सुविधाओं की वकालत की, ताकि ये आम लोगों तक पहुंच सकें।

0 सेवा भाव से ही समाधान

उन्होंने सुझाव दिया कि इन सुविधाओं को सेवा की भावना से प्रदान किया जाना चाहिए। “समाज को ऐसे चिकित्सा उपचार की जरूरत है जो सरल और सुलभ हो।” उन्होंने लोगों से अपील की कि वे अपनी संपत्ति, संसाधन, बुद्धि और शक्ति को समाज कल्याण के लिए उपयोग करें। आरएसएस के शताब्दी वर्ष के लिए पांच परिवर्तनों (स्वदेशी, नागरिक कर्तव्य, सामाजिक सद्भाव, पर्यावरण संरक्षण और परिवार जागरण) पर आधारित कार्यक्रमों का उल्लेख किया।

0 विभिन्न चिकित्सा प्रणालियों का महत्व

उन्होंने एक ही चिकित्सा प्रणाली को सर्वोच्च मानने की बजाय व्यक्तिगत आवश्यकताओं के अनुसार विविधता पर जोर दिया।
कोई एक प्रणाली सर्वोच्च नहीं: भागवत ने कहा कि भारतीय चिकित्सा प्रणालियां व्यक्तिगत जरूरतों पर आधारित हैं, जैसे नैचुरोपैथी, होम्योपैथी और एलोपैथी। “कोई एक तरीका सर्वोच्च नहीं हो सकता। भारतीय चिकित्सा प्रणालियां व्यक्तिगत जरूरतों पर आधारित होती हैं।”

0 पश्चिमी अनुसंधान की है अपनी सीमाएं

उन्होंने चेतावनी दी कि पश्चिमी चिकित्सा अनुसंधान को भारतीय परिस्थितियों पर अंधाधुंध लागू नहीं किया जाना चाहिए।
भागवत ने कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (CSR) जैसे पश्चिमी शब्दों को अस्वीकार करते हुए ‘धर्म’ की अवधारणा पर जोर दिया।

0 CSR नहीं, धर्म है

उन्होंने कहा, “CSR एक पश्चिमी शब्द है। यहां हम इसे धर्म कहते हैं। धर्म हमें जिम्मेदारी देता है और हमें जिम्मेदार नागरिक बनाता है।”
पश्चिम में जहां शक्तिशाली जीतता है, वहां भारत में शक्तिशाली कमजोर की रक्षा करता है। समाज को ऐसे केंद्र बनाने चाहिए जो सस्ते और सेवा-आधारित हों।