” महाबांध ” : चीन ने ब्रह्मपुत्र नदी पर बनाना शुरू किया दुनिया का सबसे बड़ा बांध ,भारत-बांग्लादेश में बढ़ी चिंता, सियासत गरमाई

TTN Desk

चीन ने तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी (यारलुंग जांगबो) पर दुनिया के सबसे बड़े बांध के निर्माण का शिलान्यास किया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक हिमालयी क्षेत्र में अरुणाचल प्रदेश की सीमा के निकट 18 जुलाई, 2025 को चीनी प्रधानमंत्री ली कियांग द्वारा घोषित और निर्माण प्रारंभ की गई यह परियोजना, अनुमानित 1.2 ट्रिलियन युआन (लगभग 167 अरब डॉलर या 14 लाख करोड़ रुपये) की लागत से तैयार होगी। चीन की 14वीं पंचवर्षीय योजना (2021-2025) का हिस्सा यह बांध 2035 तक पूरा होने की उम्मीद है। हालांकि, इस ‘महाबांध’ ने भारत और बांग्लादेश में जल सुरक्षा और पर्यावरणीय स्थिरता को लेकर गंभीर चिंताएं बढ़ा दी हैं।

0 बांध की अभूतपूर्व विशेषताएँ और चीन का दावा

यह विशालकाय बांध तिब्बत के दक्षिण-पूर्वी निंगची शहर में यारलुंग जांगबो नदी के निचले हिस्से में बन रहा है, ठीक उसी जगह जहां नदी हिमालय में एक बड़ा यू-टर्न लेकर अरुणाचल प्रदेश में प्रवेश करती है।

* विशाल क्षमता: यह बांध 60,000 मेगावाट (60 गीगावाट) बिजली उत्पादन की क्षमता रखता है, जो चीन के सबसे बड़े थ्री गॉर्जेस बांध (22,500 मेगावाट) से तीन गुना अधिक है।

* उद्देश्य: चीन का दावा है कि यह परियोजना तिब्बत की बिजली जरूरतों को पूरा करेगी, स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देगी और 2060 तक कार्बन तटस्थता के उसके लक्ष्य को हासिल करने में मदद करेगी।

0 भारत और बांग्लादेश की गहरी चिंताएँ: जल युद्ध का खतरा?

ब्रह्मपुत्र नदी पर चीन के इस बांध को लेकर भारत और बांग्लादेश में गंभीर चिंताएं व्याप्त हैं, क्योंकि इसके रणनीतिक, पर्यावरणीय और मानवीय निहितार्थ गहरे हैं।

* जल प्रवाह पर नियंत्रण: बांध के बड़े आकार के कारण चीन ब्रह्मपुत्र के जल प्रवाह को पूरी तरह नियंत्रित कर सकता है। इससे शुष्क मौसम में अरुणाचल प्रदेश और असम में पानी की गंभीर कमी से सूखे जैसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

* बाढ़ का खतरा: विशेषज्ञों को आशंका है कि तनाव की स्थिति में चीन इस बांध का उपयोग रणनीतिक हथियार के रूप में कर सकता है। बिना पूर्व सूचना के बड़ी मात्रा में पानी छोड़ने से अरुणाचल प्रदेश, असम और बांग्लादेश में विनाशकारी बाढ़ आ सकती है।

* पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव: कम जल प्रवाह से नदी में गाद जमा होने की आशंका है, जिससे बाढ़ के मैदानों की मिट्टी की उर्वरता प्रभावित होगी। यह अरुणाचल और असम की कृषि और पीने के पानी की आपूर्ति को भी नुकसान पहुंचा सकता है।

* भूकंपीय संवेदनशीलता: यह बांध भूकंप-प्रवण हिमालयी क्षेत्र में टेक्टोनिक प्लेट सीमा पर बन रहा है, जिससे इसकी सुरक्षा पर सवाल उठ रहे हैं।

0 चीन का रुख और प्रतिक्रिया

चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने दावा किया है कि यह परियोजना दशकों के वैज्ञानिक अध्ययन के बाद शुरू की गई है और इसका निचले इलाकों (भारत और बांग्लादेश) पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा। चीन ने यह भी कहा कि वह नदी के किनारे रहने वाले देशों के साथ संवाद बनाए रखेगा और आपदा निवारण व राहत में सहयोग बढ़ाएगा। परियोजना को चाइना याजियांग ग्रुप नामक एक नई कंपनी द्वारा संचालित किया जा रहा है, जो निंगची में पांच जलप्रपात बांधों का निर्माण करेगी।

0 भारत की सक्रिय प्रतिक्रिया: सियांग परियोजना पर विचार

भारत ने इस परियोजना पर अपनी चिंताएं चीन के साथ कूटनीतिक स्तर पर उठाई हैं। जवाबी कार्रवाई के तौर पर, भारत अरुणाचल प्रदेश में सियांग नदी (ब्रह्मपुत्र की एक सहायक नदी) पर 10,000-11,000 मेगावाट की बहुउद्देश्यीय जलविद्युत परियोजना (अपर सियांग) पर विचार कर रहा है।

* उद्देश्य: इस भारतीय परियोजना का उद्देश्य चीन के बांध के संभावित प्रभावों को संतुलित करना, बाढ़ नियंत्रण सुनिश्चित करना और जल भंडारण क्षमताओं को बढ़ाना है।

* अरुणाचल की मांग: अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने केंद्र सरकार और ब्रह्मपुत्र बोर्ड के साथ मिलकर इस परियोजना पर तेजी से काम करने की मांग की है।

* राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा: कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई और रणदीप सुरजेवाला जैसे भारतीय नेताओं ने इस चीनी परियोजना को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताया है और सरकार से इस पर सक्रिय कदम उठाने की मांग की है।

0 विरोध और पर्यावरणीय चिंताएँ

भारत और बांग्लादेश दोनों ने इस परियोजना का विरोध किया है, क्योंकि उनका मानना है कि यह नदी के पारिस्थितिकी तंत्र और निचले इलाकों में जीवन को गहराई से प्रभावित करेगा। तिब्बत के स्थानीय लोग और पर्यावरणविद भी इस बांध का विरोध कर रहे हैं, क्योंकि इसके निर्माण से हजारों लोगों का विस्थापन होगा और पहले से ही नाजुक हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र को बड़ा खतरा हो सकता है।