नई दिल्ली: अशोका विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। एक विवादास्पद फेसबुक पोस्ट, जिसे “ऑपरेशन सिंदूर” से जोड़ा गया था, के आरोप में गिरफ्तार किए गए प्रोफेसर खान को शीर्ष अदालत ने अंतरिम जमानत दे दी है। इस मामले ने सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और जिम्मेदारी के उपयोग पर एक बड़ी बहस छेड़ दी थी।
O विवादास्पद पोस्ट और गिरफ्तारी
प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद को हरियाणा पुलिस ने एक फेसबुक पोस्ट को लेकर गिरफ्तार किया था, जिस पर सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने का आरोप लगा था। यह पोस्ट कथित तौर पर “ऑपरेशन सिंदूर” से संबंधित थी, जिसने सोशल मीडिया पर काफी हंगामा खड़ा कर दिया था।
O सुप्रीम कोर्ट का फैसला और शर्तें
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की अवकाश पीठ ने प्रोफेसर खान को अंतरिम जमानत देते हुए कुछ महत्वपूर्ण शर्तें भी रखीं। कोर्ट ने उन्हें निर्देश दिया है कि…
Oजांच से संबंधित कोई भी ऑनलाइन पोस्ट या भाषण न दें: प्रोफेसर खान उन ऑनलाइन लेखों या भाषणों से दूर रहेंगे जो उनके खिलाफ चल रही जांच का विषय हैं।
O जांच में सहयोग करें ; उन्हें जांच अधिकारियों के साथ पूर्ण सहयोग करने के लिए भी कहा गया है।
Oविशेष जांच टीम (SIT) का गठन
सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार को इस मामले की गहन जांच के लिए तीन आईपीएस अधिकारियों की एक विशेष जांच टीम (SIT) गठित करने का भी निर्देश दिया है। यह कदम इस मामले की संवेदनशीलता और इसमें शामिल विभिन्न पहलुओं को दर्शाता है।
O शब्दों के चयन पर न्यायिक टिप्पणी
सुनवाई के दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने प्रोफेसर खान द्वारा इस्तेमाल किए गए शब्दों के चयन पर भी गंभीर चिंता व्यक्त की। पीठ ने उनके शब्दों को “डॉग व्हिसलिंग” (कुछ विशिष्ट समूहों को संदेश देने के लिए उपयोग किए जाने वाले शब्द) करार दिया। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि ऐसे सार्वजनिक मंचों पर शब्दों के चयन में अत्यधिक सावधानी बरतनी चाहिए, खासकर जब वे सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील मुद्दों से जुड़े हों।
O अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम जिम्मेदारी
प्रोफेसर खान की गिरफ्तारी के बाद से यह मामला शिक्षाविदों के बीच अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सोशल मीडिया पर जिम्मेदारी के उपयोग को लेकर बहस का विषय बन गया था। उनकी गिरफ्तारी ने शैक्षणिक स्वतंत्रता पर संभावित प्रभाव को लेकर भी चिंताएं बढ़ाई थीं। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को संतुलित करने के साथ-साथ सार्वजनिक व्यवस्था और सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने के महत्व को दर्शाता है।
O अब आगे क्या ?
अब सबकी निगाहें SIT की जांच और उसके निष्कर्षों पर टिकी होंगी, जो इस मामले के भविष्य को निर्धारित करेंगी। यह देखना दिलचस्प होगा कि यह जांच कैसे आगे बढ़ती है और इसके क्या परिणाम सामने आते हैं।