पुलिस हिरासत में मौत : TI समेत 4 पुलिसकर्मियों की आजीवन कारावास की सज़ा 10 साल कठोर कारावास में बदली

00 हाईकोर्ट ने इरादतन हत्या को माना गैर-इरादतन हत्या, जांजगीर-चांपा के मुलमुला थाना का मामला

TTN Desk

बिलासपुर, 25 जुलाई 2025: जांजगीर-चांपा जिले के मुलमुला थाने में पुलिस हिरासत में एक युवक की मौत के मामले में बिलासपुर हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। जस्टिस संजय के. अग्रवाल और जस्टिस दीपक कुमार तिवारी की डबल बेंच ने तत्कालीन थाना प्रभारी (टीआई), दो आरक्षक और एक सैनिक को इरादतन हत्या (धारा 302) के बजाय गैर-इरादतन हत्या (धारा 304 भाग 2) का दोषी पाया है। निचली अदालत द्वारा सुनाई गई आजीवन कारावास की सजा को रद्द करते हुए, हाईकोर्ट ने चारों आरोपियों को 10 वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई है।

0 क्या था पूरा मामला?

यह मामला 17 सितंबर 2016 का है। जांजगीर-चांपा जिले के मुलमुला थाने को सूचना मिली थी कि नरियरा स्थित विद्युत उपकेंद्र में सतीश नोरगे नामक व्यक्ति शराब पीकर उपद्रव कर रहा है। सूचना पर तत्कालीन थाना प्रभारी जे.एस. राजपूत, कांस्टेबल दिलहरन मिरी और सुनील ध्रुव उपकेंद्र पहुंचे। उन्होंने सतीश नोरगे को नशे की हालत में पाया और उसके मुंह से अत्यधिक शराब की गंध आ रही थी।
सतीश नोरगे का पामगढ़ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में चिकित्सीय परीक्षण कराया गया, जहां डॉ. श्रीमती रश्मि दहिरे ने उसकी नशे की हालत, लाल आंखें और खड़े होने में असमर्थता की पुष्टि की। पुलिस ने उसे धारा 107 और 116 के तहत गिरफ्तार कर परिजनों को सूचित किया। हालांकि, अगले दिन सुबह परिजनों को बताया गया कि सतीश की तबीयत खराब है और उसे अस्पताल ले जाया गया। पामगढ़ अस्पताल में डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।

0 परिजनों के हंगामे के बाद हुई जांच और निचली अदालत का फैसला

पुलिस हिरासत में सतीश नोरगे की मौत के बाद परिजनों और आम लोगों ने जमकर हंगामा किया। उन्होंने मामले की गहन जांच और दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज करने की मांग की। जांच के बाद इस मामले में जांजगीर न्यायालय में चालान पेश किया गया।
विशेष सत्र परीक्षण संख्या 27/2016 में, अदालत ने तत्कालीन टीआई मुलमुला जितेंद्र सिंह राजपूत, कांस्टेबल सुनील ध्रुव, कांस्टेबल दिलहरन मिरी और सैनिक राजेश कुमार को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) सहपठित धारा 34 के तहत दोषी ठहराया था। उन्हें आजीवन कारावास और प्रत्येक पर ₹2000 का जुर्माना भी लगाया गया था। इस फैसले के खिलाफ आरोपियों ने हाईकोर्ट में अपील दायर की थी।

0 हाईकोर्ट का फैसला: इरादे के बजाय परिणाम पर ज़ोर

जस्टिस संजय के. अग्रवाल और जस्टिस दीपक कुमार तिवारी की डबल बेंच ने आरोपियों की अपील पर सुनवाई की। विस्तृत विचार-विमर्श के बाद, बेंच ने सभी आरोपियों को भारतीय दंड संहिता की धारा 304 भाग 2 (गैर-इरादतन हत्या जो हत्या की श्रेणी में नहीं आती, लेकिन जिसमें मृत्यु होने की संभावना का ज्ञान हो) के तहत अपराध का दोषी पाया।
हाईकोर्ट ने निचली अदालत द्वारा धारा 302 के तहत दी गई आजीवन कारावास की सजा को रद्द कर दिया। इसके बजाय, परिवर्तित दोषसिद्धि के लिए उन्हें दस वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई है। यह फैसला पुलिस हिरासत में होने वाली मौतों के मामलों में कानूनी प्रक्रिया और न्यायपालिका के रुख को लेकर एक महत्वपूर्ण नजीर बन सकता है।