TTN Desk
दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा का नाम इन दिनों चर्चा में है. सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम ने उनकी मूल तैनाती वाली इलाहाबाद हाईकोर्ट में वापसी की सिफारिश की है. इस फैसले के पीछे का कारण उनके सरकारी बंगले में लगी आग के बाद सामने आई बेहिसाब करोड़ों की नगदी है.इस घटना से न्यायपालिका में हलचल मच गई है.
O कैसे हुआ खुलासा ?
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, जब जस्टिस वर्मा के सरकारी बंगले में आग लगी, तब वह शहर में मौजूद नहीं थे. उनके परिवारवालों ने फायर ब्रिगेड और पुलिस को बुलाया. जब आग पर काबू पाया गया, तो दमकल कर्मियों को बंगले के अंदर बड़ी मात्रा में नकदी दिखाई दी. इस बेहिसाब नकदी की बरामदगी का आधिकारिक रिकॉर्ड दर्ज किया गया और तुरंत इस मामले की सूचना भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना को दी गई.
O कोलेजियम की आपात बैठक और तबादले का फैसला
इस घटना की गंभीरता को देखते हुए, सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम की बैठक बुलाई गई. इसमें CJI संजीव खन्ना के साथ दो वरिष्ठतम जजों ने भाग लिया और सर्वसम्मति से जस्टिस वर्मा को उनके मूल हाईकोर्ट, इलाहाबाद, ट्रांसफर करने की सिफारिश की.
O कौन हैं जस्टिस यशवंत वर्मा ?
दरअसल, जस्टिस यशवंत वर्मा दिल्ली हाईकोर्ट के एक जज हैं. अब सुप्रीम कोर्ट ने उनका ट्रांसफर इलाहाबाद हाईकोर्ट कर दिया है. उनका जन्म उत्तर प्रदेश में हुआ है. उन्होंने अपनी कानूनी शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पूरी की. वकालत की शुरुआत करने के बाद वे इलाहाबाद हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करने लगे, जहां उन्होंने विभिन्न कानूनी मामलों में अपनी विशेषज्ञता दिखाई. उनकी निष्पक्षता और कानून के प्रति गहरी समझ के कारण उन्हें 13 अक्टूबर, 2021 को दिल्ली हाईकोर्ट का जज नियुक्त किया गया. इससे पहले वे इलाहाबाद हाई कोर्ट में भी अपनी सेवाएं दे चुके थे. जस्टिस वर्मा संवैधानिक, आपराधिक और सिविल मामलों में अपने ठोस फैसलों के लिए जाने जाते हैं. मगर हाल ही में उनके आवास पर लगी आग और वहां से नकदी की बरामदगी ने सुर्खियां बटोरीं, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने उन्हें इलाहाबाद हाई कोर्ट में ट्रांसफर करने का फैसला लिया.
O ट्रांसफर के अलावा होगी जांच
जस्टिस यशवंत वर्मा को अक्टूबर 2021 में इलाहाबाद से दिल्ली हाई कोर्ट में भेजा गया था. अब उनको वापस भेजने की सिफारिश के साथ उनके खिलाफ जांच और महाभियोग की प्रक्रिया तक चलाए जाने की चर्चा उठ रही है. सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के कुछ सदस्यों ने इस पूरे घटनाक्रम पर चिंता जताते हुए कहा कि अगर जस्टिस वर्मा का सिर्फ तबादला किया जाता है, तो इससे न्यायपालिका की छवि धूमिल होगी.
देश में न्याय व्यवस्था पर जनता का विश्वास कमजोर हो सकता है. कॉलेजियम के कुछ सदस्यों का सुझाव था कि जस्टिस वर्मा से इस्तीफा मांगा जाना चाहिए. अगर वे इनकार करते हैं, तो संसद में उन्हें हटाने के लिए महाभियोग की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए.
O क्या कहता है संविधान
संविधान के मुताबिक, किसी भी हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के जज के खिलाफ भ्रष्टाचार, अनियमितता या कदाचार के आरोपों की जांच के लिए 1999 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा इन-हाउस प्रक्रिया तैयार की गई थी. इस प्रक्रिया के तहत, CJI पहले संबंधित न्यायाधीश से स्पष्टीकरण मांगते हैं. अगर जवाब संतोषजनक नहीं होता या मामले में गहन जांच की जरूरत हो तो CJI सुप्रीम कोर्ट के एक न्यायाधीश और दो हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस की इन-हाउस समिति बनाते हैं. फिर जांच के नतीजे के आधार पर उनका इस्तीफा हो या महाभियोग चले.
Oकितनी शर्म की बात है : कुरैशी
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त डॉ. एसवाई कुरेशी ने कहा, “कितनी शर्म की बात है. देखते हैं क्या कार्रवाई होती है. क्या तबादला एक सज़ा है?”
Oन्यायपालिका में भ्रष्टाचार गंभीर मुद्दा : सिब्बल
दिल्ली हाई कोर्ट के जज ट्रांसफर मामले पर कपिल सिब्बल ने कहा, “मुझे मामले की बारीकियों की जानकारी नहीं है लेकिन निश्चित रूप से न्यायपालिका के अंदर भ्रष्टाचार का मुद्दा बहुत गंभीर मुद्दा है. इसलिए मुझे लगता है कि अब वक्त आ गया है कि सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे पर विचार करना शुरू करे कि नियुक्ति प्रक्रिया कैसे होनी चाहिए. इसे और अधिक पारदर्शी होना चाहिए और ज्यादा सावधानी से किया जाना चाहिए.