कोरबा: हाथी-मानव संघर्ष रोकने के लिए ‘स्पियरहेड टीम’ गठित,पत्रकार निक्की को भी किया शामिल

00 कटघोरा वनमंडल की नई पहल, पत्रकार शशिकांत डिक्सेना और हाथी विशेषज्ञ प्रभात दुबे को मिली महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी

TTN डेस्क

कोरबा। कटघोरा वनमंडल क्षेत्र में लगातार बढ़ रहे मानव-हाथी संघर्ष (Human-Elephant Conflict – HEC) की घटनाओं पर प्रभावी नियंत्रण के लिए वन विभाग ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। वनमंडलाधिकारी (DFO) कुमार निशांत (भा.व.से.) के निर्देश पर एक विशेष ‘स्पियरहेड (रैपिड रिस्पॉन्स) टीम’ का गठन किया गया है। इस दल का मुख्य उद्देश्य संघर्ष की स्थिति में तत्काल मौके पर पहुँचकर राहत, बचाव और बेहतर समन्वय स्थापित करना है।
इस विशेष टीम में विभागीय अधिकारियों के अलावा स्थानीय पत्रकार, विशेषज्ञ और सामाजिक कार्यकर्ता भी शामिल किए गए हैं, जो इसे एक सहभागी मॉडल बनाते हैं।

0 प्रमुख सदस्यों को मिली अहम ज़िम्मेदारी

जारी आदेश के अनुसार, इस 15 सदस्यीय दल की कमान उपवनमंडलाधिकारी संजय त्रिपाठी को सौंपी गई है। टीम में परिक्षेत्र अधिकारी, सहायक, रक्षक, पशुचिकित्सक के साथ दो स्थानीय हस्तियों को विशेष स्थान दिया गया है:

* शशिकांत डिक्सेना (निक्की), पत्रकार: कटघोरा के पत्रकार शशिकांत “निक्की” को उनकी निडर रिपोर्टिंग और वन्यजीव से जुड़े जमीनी मुद्दों की गहरी समझ के लिए टीम में शामिल किया गया है। निक्की ने कई बार जोखिम उठाकर हाथियों के मूवमेंट, ग्रामीणों की समस्याओं और प्रशासनिक कमियों को उजागर किया है। वे ग्रामीणों और वन विभाग के बीच एक मजबूत सेतु का कार्य करते हैं, जिससे कई टकरावों को टालने में मदद मिली है।

* प्रभात दुबे, हाथी विशेषज्ञ: वर्षों से गांव-गांव में जागरूकता अभियान चला रहे प्रभात दुबे को भी टीम का सदस्य बनाया गया है। उनकी मुहिम के कारण ग्रामीण अब हाथियों के आगमन पर सावधानी बरतते हैं, जिससे संघर्ष की घटनाओं में उल्लेखनीय कमी आई है।

0 वन विभाग का संवेदनशील प्रयास

वनमंडलाधिकारी कुमार निशांत ने बताया कि यह दल संघर्ष की किसी भी सूचना पर तुरंत कार्रवाई करेगा, घायलों को सुरक्षित निकालेगा और हाथियों को बिना नुकसान पहुँचाए सुरक्षित दिशा में मोड़ने का कार्य करेगा। इसके साथ ही, दल को मुआवजा प्रकरणों को प्राथमिकता से निपटाने, समुदाय से संवाद स्थापित करने, भीड़ नियंत्रण और ग्रामीणों को प्रशिक्षण देने की भी ज़िम्मेदारी सौंपी गई है।
पत्रकार, विशेषज्ञ और वन विभाग के अधिकारियों की यह संयुक्त पहल ‘कटघोरा मॉडल’ के रूप में सामने आई है, जिसे ग्रामीण भी एक स्वागत योग्य और विश्वसनीय प्रशासनिक कदम बता रहे हैं।