उपराष्ट्रपति धनखड़ के इस्तीफे से उठे सियासी बवाल का रहस्य और भारतीय राजनीति का नया मोड़

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जगदीप धनखड़ का इस्तीफा भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ है। यह केवल एक व्यक्तिगत निर्णय नहीं, बल्कि सत्ता, संवैधानिक मर्यादाओं, और सियासी रणनीति का जटिल मिश्रण प्रतीत होता है। इस घटना ने सरकार और विपक्ष दोनों के लिए नए सवाल और अवसर पैदा किए हैं।

✍🏼 मनोज शर्मा

भारत के उपराष्ट्रपति और राज्यसभा सभापति जगदीप धनखड़ का 21 जुलाई 2025 को अचानक इस्तीफा देना भारतीय राजनीति में एक अप्रत्याशित और विचारोत्तेजक घटना है। स्वास्थ्य कारणों का हवाला देकर सौंपे गए उनके त्यागपत्र को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 22 जुलाई को स्वीकार कर लिया, लेकिन इस कदम ने सियासी गलियारों में तूफान खड़ा कर दिया है। विपक्ष इसे “सियासी खेल” करार दे रहा है, जबकि सत्तारूढ़ दल ने इसे व्यक्तिगत निर्णय बताया। इस घटना ने न केवल संवैधानिक पदों की गरिमा पर सवाल उठाए हैं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र की पारदर्शिता और जवाबदेही पर भी चर्चा को जन्म दिया है।

0 इस्तीफे से पहले के कुछ घंटे की घटनाओं की टाइम लाइन भी देती है कुछ कुछ संकेत

धनखड़ ने अपने इस्तीफे में स्वास्थ्य और चिकित्सकीय सलाह को कारण बताया, लेकिन विपक्षी नेताओं के बयान और घटनाक्रम की टाइमिंग इसे संदिग्ध बनाते हैं। इस्तीफे से कुछ घंटे पहले तक धनखड़ संसद में सक्रिय थे, बिजनेस एडवाइजरी कमेटी की बैठक की अध्यक्षता कर रहे थे, और मल्लिकार्जुन खरगे को जन्मदिन की बधाई दे रहे थे। इतने कम समय में स्वास्थ्य का ऐसा गंभीर कारण सामने आना कई सवाल खड़े करता है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने स्पष्ट कहा कि “यह साफ है कि इस्तीफे के पीछे जो दिख रहा है, उससे कहीं ज्यादा है।” विपक्ष का दावा है कि धनखड़ पर सरकार का दबाव था, खासकर जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव और किसानों के मुद्दों पर उनकी बेबाक टिप्पणियों को लेकर।

0 बीजेपी की चुप्पी दे अटकलों को हवा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने धनखड़ के स्वास्थ्य की कामना करते हुए उनके योगदान की सराहना की, लेकिन बीजेपी की ओर से इस मुद्दे पर कोई स्पष्ट बयान नहीं आया। यह चुप्पी सियासी अटकलों को और हवा दे रही है। कुछ सूत्रों का दावा है कि धनखड़ और सरकार के बीच तनाव था, खासकर उनके द्वारा जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव को स्वीकार करने के बाद। यह प्रस्ताव बिना सरकार की सहमति के स्वीकार किया गया, जिसे सत्तारूढ़ दल ने “सीमा लांघने” की घटना माना। क्या यह इस्तीफा सरकार की रणनीति का हिस्सा था, या वास्तव में धनखड़ का व्यक्तिगत फैसला? यह सवाल अनुत्तरित है।

0 धनखड़ का विवादित कार्यकाल ने खड़े किए है और भी सवाल

उपराष्ट्रपति का पद भारत के संवैधानिक ढांचे का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह न केवल राज्यसभा का संचालन करता है, बल्कि राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में उनकी जिम्मेदारियों का निर्वहन भी करता है। धनखड़ का कार्यकाल विवादों से भरा रहा, खासकर विपक्ष के साथ उनके तनावपूर्ण रिश्तों को लेकर। 2023 में टीएमसी सांसद कल्याण बनर्जी द्वारा उनकी मिमिक्री और राहुल गांधी द्वारा वीडियो रिकॉर्डिंग की घटना ने सुर्खियां बटोरी थीं। विपक्ष ने उन पर पक्षपात का आरोप लगाया, जबकि धनखड़ ने हमेशा संवैधानिक मर्यादाओं का पालन करने की बात कही। उनके इस्तीफे ने एक बार फिर इस पद की गरिमा और निष्पक्षता पर सवाल उठाए हैं।

0 विपक्ष को मिल गया हमले का बड़ा मौका

विपक्ष ने इस इस्तीफे को सरकार के खिलाफ हमले का मौका बनाया है। कांग्रेस, शिवसेना (यूबीटी), और अन्य दलों ने इसे “लोकतंत्र पर हमला” और “सत्तारूढ़ दल की मनमानी” करार दिया। यह सही है कि धनखड़ का कार्यकाल विवादों से मुक्त नहीं रहा, लेकिन विपक्ष का यह दावा कि इस्तीफा दबाव में लिया गया, अभी तक ठोस सबूतों से समर्थित नहीं है। फिर भी, यह घटना विपक्ष को संसद के आगामी सत्रों में सरकार को घेरने का अवसर दे सकती है।

0 क्या ये बिहार की राजनीति पर बीजेपी का बड़ा दांव है ?

धनखड़ के इस्तीफे के बाद राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह कार्यवाहक सभापति की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। नए उपराष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया जल्द शुरू होगी। चर्चा है कि बीजेपी अपने सहयोगी जद(यू) के हरिवंश या बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को इस पद के लिए आगे कर सकती है। यह भी संभव है कि बीजेपी इस अवसर का उपयोग अपनी सियासी रणनीति को मजबूत करने के लिए करे, खासकर 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद की जटिल गठबंधन राजनीति को देखते हुए।यहां यह भी याद रखा जाना चाहिए कि बिहार में आज तक बीजेपी अपने बलबूते सत्ता में नहीं आई है और नीतीश कुमार की निकट भविष्य में देखी जा रही तयशुदा विदाई से बनने वाले वैक्यूम को भी बीजेपी किसी और के पास जाने देना कतई नहीं जायेगी।

0 भारतीय राजनीति का ये एक नया मोड़ बना

इन सारे तथ्यों के आलोक में देखें तो जगदीप धनखड़ का इस्तीफा भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ है। यह केवल एक व्यक्तिगत निर्णय नहीं, बल्कि सत्ता, संवैधानिक मर्यादाओं, और सियासी रणनीति का जटिल मिश्रण प्रतीत होता है। इस घटना ने सरकार और विपक्ष दोनों के लिए नए सवाल और अवसर पैदा किए हैं। यह जरूरी है कि इस प्रकरण की पारदर्शी जांच हो और जनता को सच्चाई से अवगत कराया जाए। भारतीय लोकतंत्र की ताकत उसकी पारदर्शिता और जवाबदेही में निहित है, और धनखड़ के इस्तीफे का रहस्य इसकी एक नई परीक्षा है।