अब्दुल साथर मामला : सुप्रीम कोर्ट ने PFI नेता को दी जमानत, कहा – ‘विचारधारा के लिए जेल में नहीं डाल सकते’

अब्दुल साथर मामला: सुप्रीम कोर्ट ने PFI नेता को दी जमानत, कहा – ‘विचारधारा के लिए जेल में नहीं डाल सकते’

OO भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) के पूर्व महासचिव अब्दुल साथर को केरल के पलक्कड़ में 2022 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के कार्यकर्ता श्रीनिवासन की हत्या की साजिश से जुड़े एक मामले में जमानत दे दी है।

TTN Desk

इस महत्वपूर्ण फैसले में, जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुयान की पीठ ने जोर देकर कहा कि “विचारधारा के लिए आप किसी को जेल में नहीं डाल सकते।”

O 2022 में हत्या की साजिश के आरोप में गिरफ्तारी

अब्दुल साथर को RSS कार्यकर्ता श्रीनिवासन की 2022 में हुई हत्या की साजिश के मामले में गिरफ्तार किया गया था। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने साथर की जमानत याचिका का विरोध किया था, यह तर्क देते हुए कि वह PFI के प्रमुख सदस्य थे और उनके खिलाफ 71 अन्य मामले दर्ज हैं।

O सुप्रीम कोर्ट की प्रमुख टिप्पणियाँ और तर्क:

* प्रत्यक्ष भूमिका का अभाव: सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि श्रीनिवासन की हत्या के मामले में अब्दुल साथर की कोई सीधी भूमिका नहीं थी। अदालत ने कहा, “जहां तक पीड़ित श्रीनिवासन की हत्या का संबंध है, याचिकाकर्ता को कोई सीधी भूमिका नहीं दी गई है।”

* विचारधारा के लिए जेल नहीं

पीठ ने NIA के वकील से स्पष्ट रूप से कहा, “आप किसी को उनकी विचारधारा के लिए जेल में नहीं डाल सकते। यह वह प्रवृत्ति है जो हम पाते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि उन्होंने एक विशेष विचारधारा अपना ली है, उन्हें जेल में डाल दिया जाता है।”

* पिछली घटनाओं का स्पष्टीकरण:
साथर के वकील, वरिष्ठ अधिवक्ता आदित्य सोंधी ने अदालत को बताया कि साथर के खिलाफ NIA द्वारा उद्धृत किए गए 71 मामले 23 सितंबर, 2022 को केरल भर में PFI द्वारा किए गए एक विरोध प्रदर्शन (हड़ताल) से संबंधित थे। उन्होंने यह भी बताया कि साथर को इन सभी मामलों में पहले ही जमानत मिल चुकी है, और केरल उच्च न्यायालय ने उन्हें PFI के महासचिव के रूप में सभी हड़ताल-संबंधित FIRs में आरोपी बनाने का निर्देश दिया था।

* भविष्य के अपराधों की रोकथाम के लिए हिरासत पर आपत्ति:
जब NIA ने तर्क दिया कि साथर को भविष्य के अपराधों को रोकने के लिए हिरासत में रखा जाना चाहिए, तो अदालत ने इस औचित्य पर आपत्ति व्यक्त की। जस्टिस भुयान ने टिप्पणी की, “यही दृष्टिकोण की समस्या है… दृष्टिकोण यह है कि हम व्यक्ति को सलाखों के पीछे रखेंगे।”

* लंबी हिरासत का औचित्य नहीं:
अदालत ने यह भी नोट किया कि साथर लंबे समय से हिरासत में थे और मुकदमे में काफी समय लगने की संभावना थी, जो जमानत देने का एक और कारण था।

O PFI पर प्रतिबंध और इसका प्रभाव

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) को भारत सरकार द्वारा सितंबर 2022 में गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत एक “गैरकानूनी संगठन” घोषित किया गया था। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से यह स्पष्ट होता है कि किसी व्यक्ति की केवल संगठन से संबद्धता या विचारधारा ही उसे जेल में रखने का पर्याप्त कारण नहीं है, जब तक कि उसका किसी आपराधिक कृत्य में सीधा संबंध या संलिप्तता न हो।

O फैसले का महत्व

यह फैसला भारत में व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों को मजबूत करता है। यह इस बात पर जोर देता है कि आपराधिक न्याय प्रणाली का उपयोग असंतोष को दबाने या केवल विचारों को दंडित करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए। यह “जमानत नियम है, जेल अपवाद” के सिद्धांत को भी रेखांकित करता है, जिसमें कहा गया है कि किसी व्यक्ति को तभी हिरासत में रखा जाना चाहिए जब यह बिल्कुल आवश्यक हो।